अषाढ़ का महिना और क्या महिलायें क्या पुरूष सभी का खेतों में नजर आना स्वाभाविक है। आखिर महिना जो रोपणी का है, और पहाड़ के लोकजीवन में अषाढ़ महीने व रोपणी का एक अलग ही नाता है। रोपणी पहाड़ के लोकजीवन मे इस तरह से घुली-मिली है कि आज भी रोपणी पुरानी हो या नई पीढ़ी सभी को बेहद भाती है। रोपणी का महिना चल रहा है, इस दौरान गढ़वाल के कई क्षेत्रों में रोपणी लगाई जा रही है। कीर्तिनगर ब्लॉक के ग्राम पंचायत कणोली, डांगचौरा, मुण्डोली आदि में रोपणी की जा रही है। पानी से भरे खेतों में गांव के ग्रामीण एक साथ मिल-जुलकर रोपाई करते हुये नजर आ रहे हैं। अषाढ़ की काली धूप है, गर्मी से बदन जल रहा है, लेकिन गांव वालों का एक साथ रोपाई करने का उत्साह ओर गर्मी से राहत देते पानी के तालाब में तब्दील खेतों में ग्रामीणों को वो आनंद मिलता है कि हर कोई इस ओर आर्कषित होने से खुद को रोक नहीं पाता।
क्षेत्र पंचायत सदस्य मेघा बडोनी बताती है कि पहाड़ के घर गांव में लगने वाली रोपणी सामूहिक सोर्हाद और सहभागिता का बेहतरीन उदाहरण है। रोपणी में गांव के लोगों के खेतों में रोपाई के अलग-अलग दिन पहले से ही निर्धारित होते हैं। जिस दिन जिस व्यक्ति के खेत में रोपाई लगानी होती है उस दिन गांव की सभी महिलाएं वहां पहुंचती हैं। इन महिलाओं के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था खेत के मालिक को करनी होती है। रोपणी के माध्यम से आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आपसी सबंध और इंसानियत जिंदा है।
ऐसी लगाई जाती है रोपणी
रोपणी लगाने से एक रात पहले खेत को नहरों/कूलों के द्वारा पानी से भरा जाता है। जिन स्थानों में नहर की व्यवस्था नहीं होती वहॉ गदेरों से कूल बनाकर खेतों तक पानी पहुॅचाया जाता है। रात भर खेत में पानी छोड़ा जाता है, जिससे खेत की सूखी मिट्टी गीली हो जाती है। खेत पूरी तरह जब पानी से लबालब हो जाते हैं तो उसके बाद रोपाई करने के लिए खेत में ग्रामीणों का तांता लगना षुरू हो जाता है। यहॉ बैलों के सहारे पूरे खेत में हल लगाकर खेत को धान की रोपाई के लिए तैयार किया जाता है। तत्पश्चात महिलाओं द्वारा खेत में धान की छोटी-छोटी पौध को रोपा जाता है, जिसे रोपणी कहा जाता है।
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